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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य

छायावादोत्तर उपन्यास साहित्य को विशेष प्रवृत्तियों की प्रधानता के आधार पर तीन काल खण्डों में बाँटा जा सकता है पहले काल खण्ड (1950) तथा दूसरा कालखण्ड (1950 से 1960 तक) तथा तीसरे खण्ड को साठोत्तरी 1961 अद्यतन। पहले दसक के उपन्यासकार फ्रायड तथा मार्क्स से प्रभावित होकर अपनी रचना कर रहे थे। इस कालखण्ड का दूसरा कालखण्ड प्रयोगात्मक विशेषताओं अथवा प्रवृत्तियों से प्रभावित हुआ तथा तीसरा कालखण्ड आधुनिकतावादी और समकालीन की विचार परम्परा से संपृक्त है। स्वतंत्र्योत्तर उपन्यास साहित्य को वस्तुपरक दृष्टि से चार भागों में विभाजित किया गया है।

1. नर-नारी सम्बन्ध परक
2. देश-विभाजन कथा परक:
3. नगरीय तथा महानगरीय जीवन परक
4. ग्रामांचल, जनांचल परक।

इस तरह देश विभाजन उपन्यासों में यशपाल का 'मेरी तेरी उसकी बात' भगवतीचरण वर्मा 'भूले विसरे चित' चतुरसेन का 'धर्मपुत्र' कमलेश्वर का लौटे हुए मुसाफिर और कर्रतुल हैदर का 'आग दरिया' आदि विशेष महत्वपूर्ण है।

नर तथा नारी के सम्बन्धों पर आधारित निर्मल वर्मा का 'वे दिन', श्रीकांत वर्मा का 'दूसरी बार' राजकमल चौधरी का 'मछली मरी हुयी, महेन्द्र भल्ला 'एक पति के नोट्स' गोविन्द मिश्र का 'वह अपना चेहरा, यशपाल का 'क्यों कैसे?' मनोहर जोशी का 'कसम' गिरराज किशोर का 'यात्राए' कृष्ण सोबती का 'सूरजमुखी अंधेरे के तथा भीष्म साहनी का एक 'कड़िया', नगरीय तथा महानगर के जीवन का चित्रण करने वाले उपन्यास है 'एक चूहे की मौत' बद्री उज्जगमा लिखित तथा ममता कालिया 'बेघर' तथा लक्ष्मीकांत वर्मा का तैरीकोटा आदि उपन्यास है। उपन्यास साहित्य के पहले दशक का नेतृत्व जैनेन्द्र जी करते हैं। जैनेन्द्र जी को मनोविश्लेषणवादी भी कहा जाता है। इस दशक के उपन्यासकारों में अज्ञेय इलाचन्द्र जोशी, डॉ. देवराज, नरेश मेहता, यशपाल तथा निर्मल वर्मा का नाम लिया जाता है। जैनेन्द्र के द्वारा रचित उपन्यासों में सुखदा, कल्याणी विवर्त, व्यतीत जयवर्धन में इस विशिष्ट दर्शन के वर्णन होते हैं जिसमें अन्तर्विरोध का दर्शन करवटें लेता है।

इलाचन्द्र जोशी अपने उपन्यासों में पर्दे के पीछे के रहस्यों का उद्घाटन करते हैं। इनके उपन्यास के नायक मनः ग्रंथियों से पीड़ित हैं। आलोचकों का इनके उपन्यासों के बारे में कहना है कि 'जोशी जी के उपन्यास के पात्र मनोविश्लेषण के किताबी ढाँचे में अनरूप ढाले गये हैं इसी कारण उनकी स्वतंत्रता सत्ता कहीं नहीं स्थापित होती।

अज्ञेय द्वारा रचित उपन्यास एक जीवनी, नदी का द्वीप 'अपने-अपने अजनबी' नामक उपन्यासों में क्रमशः जीवन का आग्रह तथा प्रतिक्रियावादी प्रवृत्ति का रेखांकन किया गया है। डॉ. देवराज द्वारा रचित 'पथ की खोज', बाहर-भीतर, रोड़े और पत्थर, अजय की डायरी तथा नरेश मेहता का डूबते मस्तूल तथा निर्मल वर्मा का 'वे दिन' भी इसी परम्परा में आते हैं। सामाजिक यथार्थवादी कथाकारों में सर्वश्री यशपाल, रांगेयराघव भैरव प्रसाद गुप्त, मन्मथनाथ गुप्त, नागार्जुन, बैरव प्रसाद गुप्त तथा गृत राय आदि का नाम लिया जा सकता है। इनके उपन्यास स्वतन्त्रता से पहले तथा बाद के सामाजिक राजनीतिक जीवन के मूल्यों पर आधारित है।

मन्मथ नाथ गुप्त मार्क्सवाद के आग्रही नहीं लेकिन प्रगतिवादी ढंग से सामाजिक समस्याओं की विवेचन अपने उपन्यासों में प्रस्तुत करते हैं।

रागेय राघव भी मार्क्सवादी सिद्धान्तों को मानने वाले हैं उनके द्वारा रचित उपन्यास - मुर्दों का टीला सीधा-सादा रास्ता तथा घायल फूल आदि लगभग सौ उपन्यासों की रचना की है। प्रेमचन्द युग के उपन्यासकारों में मुख्यतया अमृतलाल नागर, भगवती चरण वर्मा, उपेन्द्रनाथ अश्क, यशस्वी तथा दीर्घायु आदि हुये हैं। भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित उपन्यास टेढ़े-मेढ़े रास्ते, भूले बिसरे चित्र, आखिरी दाँव, सामार्थ्य सीमा आदि।

अश्क द्वारा रचित उपन्यासों में जिन्होंने बहुत ख्याति प्राप्त की उनमें है- बड़ी-बड़ी आँखें (1954), आदि है। विभिन्न आलोचकों का कहना है कि जहाँ पर मध्य वर्ग के परिवारों, परिस्थितियों, समस्याओं परिवेश का सम्बन्ध है वहाँ पर प्रेमचन्द परम्परा के उपन्यासकार है। अमृतलाल नागर के विख्यात उपन्यासों में सेठ बाकेमल, महाकाल, नवाबी मसनद, अमृत और विष, सुहाग के नूपर आदि का नाम लिया जा सकता है। नागर जी अपने उपन्यासों में व्यक्ति तथा समष्टि के सापेक्षिक सम्बन्धों को अपने उपन्यासों में चित्रित करते हैं।

प्रेमचन्द के युग में ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना करने वाले हैं हजारी प्रसाद द्विवेदी, राहुल संकृत्यायन, चतुरसेन शास्त्री तथा वृन्दावनलाल वर्मा आदि हैं। वृन्दावन लाल वर्मा का प्रसिद्ध उपन्यास अहिल्याबाई, झांसी की रानी तथा भूवन विक्रम आदि है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के उपन्यासों में हमें इतिहास और संस्कृति का सुन्दर संगम देखने को मिलता है। इनके उपन्यासों में आधुनिक युग का बोध सांस्कृतिक मूल्यों तथा मान्यताओं का प्रस्तुतीकरण पाठक को मानसिक तथा बौद्धिक संतोष प्रदान करता है।

राहुल सांस्कृत्यायन के उपन्यासों में भी मार्क्सवादी विचारधारा की गहरी छाप पड़ी है। इस कारण इनके उपन्यासों के कथानक पर परिवेश और संस्कृति का अवमूल्यन तथा वास्तविकता के साथ अन्याय होने लगता है।

चतुरसेन शास्त्री भी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार है। इनके द्वारा रचित उपन्यास मार्क्सवादी जीवन दर्शन लादकर ऐतिहासिक परिप्रेष्य कर देते हैं वहीं पर चतुरसेन शास्त्री ऐतिहासिक परिवेश पर आधुनिकता लादकर इतिहास को संदिग्ध बना देते हैं।

फणीश्वर नाथ 'रेणु' को आँचलिक उपन्यासों का जन्मदाता माना जाता है। मैला आँचल तथा 'परती परिकथा' बिहार प्रान्त के विशेष के जनजीवन तथा तत्कालीन घटनाओं का समग्र बिम्ब प्रस्तुत करते हैं। इनके उपन्यासों में भी मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े इस कारण कहीं-कहीं इस दृष्टि बिन्दु के दुराग्रह के कारण उथले पात्रों तथा घटनाओं का नियोजन पूर्वाग्रही प्रतीत होता है।

उदयशंकर भट्ट द्वारा रचित उपन्यास सागर लहरें और मनुष्य (1959) इस तरह की रचना है। इस रचना में आधुनिकता के आकर्षण में फसते सीधे-साधे मानवों क्रूर नियति की घटना का चित्रण किया गया है।

इसी तरह रागेय राघव के उपन्यास 'कब तक पुकारूँ में नटों के जीवन का वर्णन किया गया है। शिव प्रसाद सिंह के द्वारा रचित उपन्यास के कथानक स्वतंत्रता के बाद गाँव की स्थिति का वर्णन करते हैं। रामदरश मिश्र ने भी अपने उपन्यासों सूरवता हुआ तालाब में दमघोंटू समस्याओं तथा विसंगतियों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है। इसी तरह हिमाशू का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है। इसी तरह हिमांशू श्रीवास्तव, राजेन्द्र अवस्थी, विवेकी राय, सच्चिदानन्द धूमकेतू, बलभद्र ठाकूर, केशवप्रसाद मिश्र, डॉ. रमानाथ त्रिपाठी तथा राजेन्द्र अवस्थी ने भी अपने- अपने उपन्यासों समाज में घट रही घटनाओं का चित्रण प्रस्तुत किया है। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में धर्मवीर भारती का 'गुनाहों का देवता', रोड़े और पत्थर, पथ की खोज तथा सूरज का सतावाँ घोडा आदि की चर्चा की जा रही है।

प्रयोगशील उपन्यासकारों में प्रभाकर माचवे, गिरिधर गोपाल, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर दयाल आदि का नाम आता है। अपने उपन्यासों में कविता की भाँति गद्य में भी उपन्यास विधा में प्रतीक, टाइमशिफ्ट, सिनेरियों आदि का सहारा लेकर प्रयोग किये हैं।

आधुनिकता का बोध को रेखांकित करने वाले साठोत्तरी उपन्यासों में मोहन राकेश द्वारा . रचित उपन्यास (अंधेरे व बन्द कमरे 1961) तथा निर्मल वर्मा कृत वे दिन, श्रीकान्त वर्मा द्वारा रचित दूसरीबार महेन्द्र भल्ला रचित 'एक पति नोट्स ऊषा प्रियंवदा द्वारा रचित 'पचपन घम्भे लाल दीवारें' मुन्नू भण्डारी द्वारा रचित 'आपका बंटी' तथा बाल शैरि रेड्डी आदि के उपन्यासों में कहीं भी वैयक्तिक कहीं पारिवारिक सामाजिक विषमताओं का मुखर विरोध के साथ ही आधुनिक जीवन की त्रासदी क्षीण होते परम्परागत मूल्यों तथा पश्चिमी सभ्यता का अन्धा अनुकरण के विस्तृत व्याख्या की गयी है।

आठवें दशक के 'समकालीन साहित्य' की बहुत जोर-शोर से चर्चा हुयी। इस गद्य खण्ड की प्रवृत्तियों को रहने के कारण इस वाल में उपन्यास साहित्य की स्थिति उसी तरह की रही जैसी पूर्व दशकों में थी। इस दशक मुख्य उपन्यासकार है - श्रीलाल शुक्ल का 'सीमायें टूटती हैं मुन्नू भण्डारी का आपका बंटी, मोहन राकेश 'अन्तराल', शिवप्रसाद सिंह 'गली आगे मुड़ती है' आदि है।

इसी तरह नवें दशक एक मुख्य उपन्यासकार हैं - श्रीलाल शुक्ल का 'पहला पड़ाव', शिवप्रसाद सिंह 'नीला चाँद' तथा शैलूष, नरेन्द्र कोहली का 'महासामर' शशिप्रभा शास्त्री 'उम्र एक गलियारे की निर्मल वर्मा का 'रात का रिपोर्टर', हसंराज रहबर का 'बोलो सोनिहाल, पंकज विष्ट 'उस, चिड़िया का नाम' तथा विवेकीराय का 'समर शेष है' आदि है।

इसके आगे के दशक में गिरिराज किशोर का 'पहला गिरिमिटिया तथा चित्रामुदगल का 'आवा' आदि है। इस दशक में जैसे-जैसे आधुनिक जीवन का जगत में विस्तार होता गया उसी तरह उपन्यास के विशाल फलक को स्वातंत्र्योत्तर नवोदित कथा के हस्ताक्षरों के द्वारा इसको उबारा जाता रहा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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